बीते दिन देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन किसानों का नाम लेकर सड़कों पर जो षड्यंत्रकारी नंगा नाच हुआ उससे निसंदेह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को गहरी चोट पहुँची है । 72 वर्ष उम्र दराज़ गणतंत्र के साथ जो घिनौना मज़ाक किया गया उससे आज देश का हर चिंतनशील नागरिक दुखी है । पिछले दो महीनों से भी अधिक समय से कृषि बिल को रद्द कराने और अपनी फसल की ख़रीद की न्यूनतम राशि की गारंटी पाने को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे किसान सड़कों पर उतरकर इतने उग्र और हिंसक हो सकते हैं, इसकी कल्पना कभी की नहीं गयी थी l लेकिन कल जब आईoटीoओo चौराहे और लाल क़िले के प्रांगण में अचानक उग्र हुए किसानों ने जो हिंसक तांडव किया वो वास्तव में शर्मसार था l और उससे देश का सिर शर्म से झुक गया है l लेकिन इस पूरे प्रकरण का बारीकी से मूल्याँकन करने पर कुछ ऐसे प्रश्न तो सामने आकर खड़े हो ही जाते हैं जिन पर गंभीरता से विचार करना ज़रूरी है । किसान जो दिल्ली की अलग- अलग सीमाओं पर दो महीने से संवैधानिक परिधि में रहते हुए जो अपना शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे थे, उसके साथ बड़ी तादाद में लोगों की सहानुभूति जुड़ती जा रही थी और आंदोलन हर दिन मज़बूती पकड़ रहा था । फिर ऐसे में किसानों को गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड करके ऐसी हिंसा करने की क्या ज़रूरत थी जो हिंसा हमें कल देखने को मिली है । किसान इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि उनके इस लंबे आंदोलन के साथ अगर कहीं भी कोई हिंसा या अप्रिय घटना जुड़ गई तो मज़बूती पकड़ रहा है उनका आंदोलन जन सहानुभूति खो देगा और कमज़ोर पड़ जाएगा l ऐसे में यह बात गले नहीं उतर रही कि आंदोलनरत किसान इतना बड़ा जोखिम उठाएंगे और अब तक के अपने सफ़ेद दामन पर हिंसा का यह काला धब्बा लगवाना चाहेंगे l दूसरी ओर केंद्र सरकार की खूफिया एजेंसियों को इस बात की जानकारी होनी ही चाहिए थी कि किसानों की ट्रैक्टर परेड मैं कुछ ऐसे असामाजिक तत्व शामिल हो सकते हैं जो राजधानी की फ़िज़ा ख़राब कर सकते हैं । ऐसे में दिल्ली पुलिस को इस इतनी बड़ी विशाल परेड को इतने हल्के में नहीं लेना चाहिए था । दिल्ली पुलिस को ऐसी व्यवस्था बनानी ही चाहिए थी, जिससे उग्रवादी तत्व इतनी आसानी से अपनी बदनीयत कारगुज़ारियों को अंजाम न दे पाते l लाल क़िले की प्राचीर पर किसी धर्म और संगठन के झंडे कई घंटों तक लहराते रहे और पुलिस मूकदर्शक बनी देखती रही l कल देश की इस सबसे बड़ी धरोहर पर दबंगियों का कब्ज़ा हो गया और दिल्ली पुलिस के कर्मी अपनी जान बचाने को इधर- उधर दौड़ते रहे l कल की इस शर्मसार घटना की जाँच होनी चाहिए क्योंकि इसके पीछे किसी बड़े राजनैतिक षड्यंत्र की बू आ रही है l
दिल्ली की हिंसा एक राजनितिक षड्यंत्र